
महाकाली एक आदि शक्ति है । माँ पार्वती का एक ऐसा रूप जिससे स्वम महाकाल भी अनजान थे। जिस समय शुम्भ और निशुम्भ का वध करना अनिवार्य था उस समय भगवान शिव ने माँ पार्वती को उनके अंदर की आदि शक्ति का स्मरण कराया। तब महाकाली प्रकट हुई थी।
इसके पीछे की एक पौराणिक कहानी – शुम्भ और निशुम्भ कैलाश पर्वत पर आक्रमण करने आये थे। तब महाकाल ने माँ पार्वती को उनकी शक्ति का स्मरण करवाया तथा शुम्भ – निशुम्भ का वध करवाया। उसके बाद रक्तबीज नामक असुर का रक्त पीने से महाकाली के अंदर नकारात्मकता आयी जिसके कारण वे दुनिया को भस्म करने जा रही थी। तभी भगवान शिव ने महाकाल का रूप लेकर महाकाली के पैरों के नीचे लेटकर उन्हें शांत किया।
जब सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था और भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या बिछाकर योगनिद्रा का आश्रय ले सो रहे थे, उस समय उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गये। तब उनका संगहार भी महाकाली ने ही किया। महिषासुर, शुम्भ – निशुम्भ, मधु – कैटभ और रक्तबीज जैसे असुर जिन्हे वरदान प्राप्त था ऐसे असुरों का संगहार किया महाकाली ने।
माँ दुर्गा नवरात्री में छठे (6th) दिन महाकाली की पूजा की जाती है। मान्यता है की इस दिन महाकाली की पूजा करने से घर में सुख शांति का वास होता है। कलेश व अन्य असामाजिक तत्व घर से दूर रहते है व घर में घी का दीपक जलाने से घर में माँ लक्ष्मी का वास होता है।
महाकाली मन्त्र :
ॐ क्रीं कालिकायै नमः
ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली किरपालिनी
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