होली का त्यौहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का यह पर्व पारम्परिक रूप से पुरे दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है जिसे छोटी होली व होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे मुख्य धुलेंडी (होली) वाले दिन लोग एक दूसरे पर रंग, गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाते है। होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का सिलसिला दोपहर तक चलता है।
इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। यह त्यौहार मुख्यत: भारतीय और नेपाली लोग मनाते हैं। होली के दिन का प्रमुख पकवान गुंजिया है जो कि मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। बृज में खेले जाने वाली होली हिन्दुस्तान में आज भी सबसे ज्यादा मशहूर है। लोग अपना गाओं व घर छोड़कर बृज में होली खेलने भी जाते हैं।
पौराणिक कथाएं:-
1. हिरण्यकशिपु व प्रह्लाद की कथा
प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी।उसका पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था।
जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु भक्त है, तो उसने प्रह्लाद को रोकने की कोशिश की, हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया। परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन होने लगा और ये त्योहार मनाया जाने लगा।

2. कामदेव की कथा
इंद्रदेव ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया। कामदेव ने उसी समय वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया, इससे सभी प्राणी काममोहित हो गए। कामदेव का भगवान शिव को मोहित करने का यह प्रयास होली तक चला। होली के दिन भगवान शिव की तपस्या भंग हुई। उन्होंने गुस्से में आकर कामदेव को भस्म कर दिया तथा यह संदेश दिया कि होली पर मोह, लालच, धन, इनको अपने पर हावी न होने दें। तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा प्रारंभ हुई। इस घटना के बाद सभी देवी-देवताओं, शिवगणों, मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया। उन्होंने एक-दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर जोरदार उत्सव मनाया, जो आज होली के रूप में घर-घर मनाया जाता है।
इनके अतिरिक्त राक्षसी ढूंढा, राधा – कृष्णा के रास की कुछ और कहानियाँ भी होली के पर्व से जुडी हैं।
होली २०२०:
होलिका दहन तारिक :- ०९ मार्च २०२०
मुख्य होली (धुलेंडी) तारिक :- १० मार्च २०२०
Holi 2020:
Holika Dehan Date :-09 March 2020
Main Holi (Dhulendi) Date :- 10 March 2020.
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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